उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको
स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के एक
क्रांतिकारी विचारक माने जाते हैं. 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में जन्मे
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था. इन्होंने अपने बचपन में
ही परमात्मा को जानने की तीव्र जिज्ञासावश तलाश आरंभ कर दी. इसी क्रम में
उन्होंने सन 1881 में पहली बार रामकृष्ण परमहंस से भेंट की और उन्हें अपना
गुरु स्वीकार कर लिया तथा अध्यात्म-यात्रा पर चल पड़े.
काली मां के अनन्य भक्त स्वामी विवेकानंद ने आगे चलकर अद्वैत वेदांत के आधार पर सारे जगत को आत्म-रूप बताया और कहा कि “आत्मा को हम देख नहीं सकते किंतु अनुभव कर सकते हैं. यह आत्मा जगत के सर्वांश में व्याप्त है. सारे जगत का जन्म उसी से होता है, फिर वह उसी में विलीन हो जाता है. उन्होंने धर्म को मनुष्य, समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए स्वीकार किया और कहा कि धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं. भारतीय जन के लिए, विशेषकर युवाओं के लिए उन का नारा था – “उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको
काली मां के अनन्य भक्त स्वामी विवेकानंद ने आगे चलकर अद्वैत वेदांत के आधार पर सारे जगत को आत्म-रूप बताया और कहा कि “आत्मा को हम देख नहीं सकते किंतु अनुभव कर सकते हैं. यह आत्मा जगत के सर्वांश में व्याप्त है. सारे जगत का जन्म उसी से होता है, फिर वह उसी में विलीन हो जाता है. उन्होंने धर्म को मनुष्य, समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए स्वीकार किया और कहा कि धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं. भारतीय जन के लिए, विशेषकर युवाओं के लिए उन का नारा था – “उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको
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